शुक्रवार, 20 मार्च 2009
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मैं आगरा हूँ। जी हाँ आगरा. अग्रवन से अक़बराबाद और अब आगरा. दिल्ली से दो सौ किलोमीटर दूर दक्षिण में यमुना के किनारे ताज के साये में मैं साँस लेता हूँ। सूर, नज़ीर ने मुझे ज़ुबान दी है और जहाँगीर ने न्याय. शहंशाह-ए-हिन्द शाहजहाँ ने तोहफे में ताजमहल मुझे ही दिया है. मुझमें क़शिश ही ऐसी है जो नज़ीर से कहलवा देती है- "शायर कहो नज़ीर कहो आगरे का है"
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