शुक्रवार, 8 मई 2009

आओ बैठो मेरे पास............

मैं आज आप सबको अपने अतीत के बारे में कुछ बताता हूँ........
मैं अपने शुरूआती काल में सदियों तक ब्रज क्षेत्र के भाग के रूप में रहा. महाभारत के पश्चात अर्जुनायन नामक गणराज्य के रूप में अर्जुन के वंशजों ने मुझ पर शासन किया. जिसने सबसे पहले मेरी प्रतिभा को पहचाना वह था सिकन्दर लोदी, उसने मुझे सन् १५०४ में अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया और मेरी यमुना के पश्चिमी किनारे पर एक किले का निर्माण करवाया. इसके पशचात मेरा जो भाग्योदय हुआ, मेरा जो विकास हुआ उसे आप ऐसे भी समझ सकते हैँ कि सन् १५८५ के आसपास मैं विस्तार और जनसंख्या में लंदन से भी बढ़ चढ़ कर था. अबुल फ़ज़ल, जिसे मेरी सर ज़मीं पर जन्म लेने का गर्व था, ने मेरे सुन्दर घास के मैदानों, स्वादिष्ट फलों, सुन्दर फूलों,सुगन्धित तेलों और उम्दा किस्म के पानों का वर्णन किया है. मेरे यहाँ के अंगूर और तरबूज ट्रांस आक्सियाना और पर्शिया से टक्कर लेते थे. मेरी सर ज़मीं पर सभी धर्म, जाति, सम्प्रदाय समान रूप से फूले और फले. अकबर ने दीम-ए-इलाही की शुरूआत यहीं की. स्वामी हरिदास, बैजू बावरा, सूरदास की सुर और साहित्य की किरणें यहीं से विकीर्णित हुईं. जहाँगीर के समय में मैं अपने वैभव के शिखर पर था. उसकी पत्नी मल्लिका-ए-हिन्दुस्तान नूरजहाँ ने ज़रदोज़ी का काम शुरू करवाया. उसी ने यहां मुग़लकालीन इमारतों मैं संगमरमर के प्रयोग की शुरूआत की और अपने पिता की स्मृति में ऐत्माउद्दौला का निर्माण करवाया. संगमरमर का यह प्रयोग शाहजहाँ के समय ताजमहल के रूप में अपने चरम पहुँचा.
इक शहंशाह ने बनवाके हसीं ताजमहल,
सारी दुनिया को मुहब्बत कि निशानी दी है.
मुगलों के बाद अंग्रेजों ने भी मेरे महत्व को कम नहीं होने दिया. सन्१८३३ई० में दिल्ली और पंजाब पर नियंत्रण रखने के लिये इन्हें आगरा प्रेसीडेन्सी बनायी गयी .आगरा प्रेसीडेन्सी में दोआब, रुहेलखण्ड, गोरखपुर, इलाहाबाद और जबलपुर तक की सीमायें सम्मिलित थीं. सर चार्ल्स मैटकाफ मेरे पहले गवर्नर थे. ऐसा नहीं है कि मैंने सिर्फ अच्छे ही दिन देखे हैं. सन् १८३८ई० में अकाल ने मुझे तोड़कर रख दिया. हर रोज़ २००से ऊपर अपने कलेजे के टुकड़ों की मौत मुझे अपनी आँखों से देखनी पड़ी. गेहूँ का मूल्य एक रुपये का बारह सेर होता था और आम जनता के पास दो आने भी नहीं होते थे.........ग...ला.. रूँध..रहा है... बातें.... अभी.... बहुत.... सी... हैं,... लेकिन.... आज ...इतनी.... ही, शेष फिर कभी........ अब तो मुलाकात होती ही रहेगी. ...................


मुहब्बत की ख़ुशबू के साथ
आपका आगरा.

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

समर्पण

मुहब्बत और गंगा-जमुनी तहज़ीब के शहर में आपका स्वागत है. मेरा ये ब्लाग उन सब के नाम समर्पित है, जो मुझे चाहते हैं, मुझसे दिली मुहब्बत रखते हैं और मुझमें अपनापन महसूस करते हैं. यहाँ इस ब्लाग पर कोई भी आगरा यानी मुझसे से सम्बन्धित अपने विचार, रचनाऐं, फोटो आदि प्रेषित कर सकते हैं. आपको सिर्फ़ इतना करना है कि अपनी बात mainagrahoon@gmail.com पर मेल करनी है.
ढेर सारी मुहब्बतों के साथ
आगरा